26 March 2011

Day 41, Home, Jabalpur (M.P.)


दोस्तों, मेरी अगली प्रेम कविता का शीर्षक है : ये श्याम कहाँ जाए...


ये श्याम कहाँ जाए...


अब के बरस की

होली में


हुआ कुछ
अजब
अनोखा
घटी
एक अनहोनी
इस बार
राधा नहीं
बल्कि
रुक्मणि
के बिन
था
श्याम अधूरा
हाँ...
राधा कृष्ण
तो हैं ही
एक दूसरे के पूरक
एक सिक्के के दो पहलु
राधा को कृष्ण कहो
या
कृष्ण को राधा
दोनों को
किया ही नहीं जा सकता
अलग
किन्तु
यदि
सब हैं कृष्ण के
कृष्ण हैं सबके
तो कृष्ण भी था
इस बार
अपनी रुक्मणि
बिन अधूरा
और
रुक्मणि भी थी
अपने श्याम
बिन अधूरी
नटखट श्याम की
अजब अनोखी
शरारत के कारण
रुक्मणि है
दूर जा बैठी
उसके बिन
श्याम
यहाँ वहां
हर जगह
कर रहा 
पूछ गूछ
कहाँ है
मेरी प्राण प्रिये
रुक्मणि
बोलो न
तुम बिन
ये श्याम कहाँ जाए...

ll विकी तिवारी ll

तुम्हारा, तुम्हारा ही तो

विकी तिवारी

25 March 2011

Day 40, Home, Jabalpur (M.P.)

दोस्तों... मेरी अगली प्रेम कविता - दिल तो बच्चा है जी...

दिल तो बच्चा है जी...


दिल तो बच्चा है जी


ये गाना नहीं
सच्चाई है
बच्चा...
जो नहीं जनता
सही गलत
सच झूट
अच्छा बुरा
वो ही तो
कर बैठता है
एक मासूमियत भरी भूल
बिना सोचे
समझे जाने
कि
उसकी इस
साफगोई से
किसी को
दर्द हुआ होगा
होता होगा
वैसे ही
ये मेरा दिल
जो अभी भी
आज भी
बच्चा ही है
कर बैठा
एक
अनचाही अनजानी
भूल
तोड़ बैठा
तुम्हारा दिल
मैंने देखी
तुम्हारे अन्दर
इक प्यारी सी बच्ची
एक समझदार माँ भी
जो रोई 
उस बच्चे की
नादानी पर
उस भूल के बाद
चलो यूँ करें
जैसे
बच्चे ज्यादा देर तक
नाराज़ नहीं होते
नाराज़ न होते हुए
माँ
कर देती है माफ़
बच्चे कर देते हैं
एक दुसरे को
दोस्ती पुच्ची
आओ
तुम्हारा दिल भी
मुझे कर दे माफ़
सच्ची मुच्ची
देते हुए
मेरे गाल पर
वही चिर परिचित
गीली पुच्ची
फिर गाते हुए वही गाना
दिल तो बच्चा है जी
सच्ची मुच्ची...

ll विकी तिवारी ll

तुम्हारा, तुम्हारा ही तो

विकी तिवारी