दोस्तों, कल जो कविता लिखी थी उसका शीर्षक देना भूल गया था... उसका शीर्षक था -
प्रेम...
आज जो कविता पोस्ट कर रहा हूँ, उसका शीर्षक है -
ज़िन्दगी :
ZINDAGI
कल
मैंने ज़िन्दगी को देखा
बहुत करीब से
जैसे कोई देखता हो
अपनी मौत को नसीब से
मैंने देखा
की किस तरह ये ज़िन्दगी
एक छोटे से कपडे की बनी गोदी में किलकारी भर रही है
मैंने देखा
की किस तरह ये कमज़ोर ज़िन्दगी
झाड की टहनी पकड़ कर सड़क पार कर रही है
जब अस्पताल गया तो देखा
की किस तरह कई जिंदगियां पलंग पर कराह रही थीं
शायद कुछ मौत के इंतज़ार में
शायद कुछ फिर एक नयी ज़िन्दगी के इंतज़ार में
मैंने पढ़ा है
की किस तरह वेश्यालयों में
असहाय ज़िन्दगी की खरीद फरोख्त होती है
ये भी देख चूका हूँ की किस तरह शराबखानो में
एक ज़िन्दगी अपना पेट पालने के लिए चीथड़े पहन कर नाचने पर मजबूर है
तब मैंने ज़िन्दगी से कहा कि -
तू बिलकुल अप्रतिम है
हर बार रंग बदलती है
और इस तरह ही
तू फिर आती है
एक नए रूप में
एक नयी ज़िन्दगी...
SAMAPT
प्रतिक्रिया के इंतज़ार में...
आपका, आपका ही तो...
विक्की Tiwari