26 October 2010

Day 15, Office, Jabalpur (M.P.)

VRIDDH

वृद्ध
इस शब्द से
हम
जाने क्या समझ बैठते हैं
समझते हैं
कि ये एक
बूढी,
कमज़ोर,
लाचार सी
दिखने वाली एक काया है
लेकिन नहीं
सिर्फ उम्र कि वृद्धि को
वृद्ध करक देना उचित नहीं
ये वृद्धि है उसके अनुभवों कि
वृद्धि है उसकी जिम्मेदारियों कि
वृद्धि है उसके माथे कि शिकन कि
इस वृद्ध कि आज्ञा कि
avagya कर हम भूल जाते हैं
कि
एक दिन
हम bhi
होंगे
वृद्ध...

 SAMAAPT

aapka...
aapka hi to...

विक्की तिवारी 

24 October 2010

Day 14, Office, Jabalpur (M.P.)

NASHA - 2

रिन्दों से सुना है कि
जीवन में एक न एक
नशा ज़रूरी होता है
मैंने सोचा -
" क्या इसलिए इंसान का जन्म होता है "
खेर...
मुश्किलों से
हार कर
थक कर
टूट कर
जब
नशे का आदि हुआ
तो काफी अंतराल बाद
बन्दों ने मुझसे कहा -
" क्यों नशा करते हो,
क्या तुम अपने आप को
निराश हताश पाते हो "
तब उन्होंने परिभाषित किया
शराब बनाम नशे को
कि
अगर शराब पीने से
इंसान  को सहारा मिलता
उस क्षण
इसे पीने के बाद
इंसान लडखडाता नहीं... SAMAAPT


आपका... आपका ही तो...

विक्की तिवारी...

Day 13, Office, Jabalpur (M.P.)

NASHA - 1

शायद ही कभी किसी का
इस बाt पर ध्यान गया हो
कि नशा और निशा में
कितनी ही रही समानता हो
देखा जाए तो ये दोनों
भाई behan हैं
भाई behan हैं ?
हाँ...
नशा करके जीवन में अँधेरा होता hai
और
निशा तो है रात,
काली घनेरी रात
हम सबने देखा, सुना, महसूस किया होगा कि
सिगरेट जिसके एक सिरे पर धुआं तो
दुसरे पर बेवक़ूफ़ होता है
आज के ज़माने में कोई सिगरेट न पीये
तो हमे अचरज होता है
अब इसकी behan कि सुध लें
शराब अगर इसे तोडा जाए तो मिलता है
shar और आब
मतलब
तीरों कि नदी
ये शरीर को बींध डालती है
शरों कि भांति
पान करता है हमारे ही शरीर का पान
अन्दर ही अन्दर ख़त्म कर देता है हमारे शरीर कि आन
इसका ही बही है गुटखा भी
जो हमारे शरीर कि प्रतिरोधक क्षमता को खा जाता है
इन सबसे से ये समझ आता है
कि नशा
समूचे जीवन को सुचारू रूप से खा जाता है... SAMAAPT

Vicky Tiwari

22 October 2010

Day 12, Office, Jabalpur (M.P.)

दोस्तों, कल जो कविता लिखी थी उसका शीर्षक देना भूल गया था... उसका शीर्षक था - प्रेम...
आज जो कविता पोस्ट कर रहा हूँ, उसका शीर्षक है - ज़िन्दगी :

ZINDAGI
कल
मैंने ज़िन्दगी को देखा
बहुत करीब से
जैसे कोई देखता हो
अपनी मौत को नसीब से
मैंने देखा
की किस तरह ये ज़िन्दगी
एक छोटे से कपडे की बनी गोदी में किलकारी भर रही है
मैंने देखा
की किस तरह ये कमज़ोर ज़िन्दगी
झाड की टहनी पकड़ कर सड़क पार कर रही है
जब अस्पताल गया तो देखा
की किस तरह कई जिंदगियां पलंग पर कराह रही थीं
शायद कुछ मौत के इंतज़ार में
शायद कुछ फिर एक नयी ज़िन्दगी के इंतज़ार में
मैंने पढ़ा है
की किस तरह वेश्यालयों में
असहाय ज़िन्दगी की खरीद फरोख्त होती है
ये भी देख चूका हूँ की किस तरह शराबखानो में
एक ज़िन्दगी अपना पेट पालने के लिए चीथड़े पहन कर नाचने पर मजबूर है
तब मैंने ज़िन्दगी से कहा कि -
तू बिलकुल अप्रतिम है
हर बार रंग बदलती है
और इस तरह ही
तू फिर आती है
एक नए रूप में
एक नयी ज़िन्दगी... SAMAPT

प्रतिक्रिया के इंतज़ार में...
आपका, आपका ही तो...

विक्की Tiwari

21 October 2010

डे ११, ऑफिस, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

नमस्ते, गुड इवेनिंग, आदाब, सत श्री आकाल... यारों सुनाओ कैसे हैं आपके हाल... दोस्तों आज बहुत समय बाद अपने ब्लॉग पे आना हो पाया... अब रोज़ लिखा करूंगा... और खूब लिखा करूँगा... एक नयी शुरुआत एक कविता से करते हैं, जो हमने लिखी है :

वो लड़की है
या
इश्वर की बनाई इक सुन्दर कृति
जिसकी झील सी आँखें हैं
जिसके होंठ गुलाब की पंखुड़ियां
बाल हैं काली घटाओं से भी घने
जब मुस्कुराती है
ऐसा लगता है मानो बाग़ में
हज़ारों फूल खिल गए
एक लड़का है
जो उससे प्रेम करता है
पवित्र निश्छल प्रेम
मगर वो लड़की यही समझती रही
वो भी है औरों जैसा
औरों जैसा ?
उसके जिस्म से प्यार करने वाला
क्या ऐसा हो सकता है
जो उससे निश्छल प्रेम करता है
वो वाकई ऐसा हो सकता है
नहीं कतई नहीं
मगर उस लड़के की भी प्रेम की परिभाषा ही
कुछ और है
वो कहता है
प्यार वो नहीं
जिसे पा लिया जाये
प्यार तो वो है जिसके लिए
सदा दिल में एक कसक सी रहे
क्योंकि अगर शादी के लिए ही प्यार होता है
तो प्यार होना ही नहीं चाहिए...

आपको ये कविता कैसी लगी, मुझे बताईयेगा ज़रूर... अपनी प्रतिक्रियाएं इस ब्लॉग पर या फिर facebook और orkut पे भी दे सकते हैं... facebook और orkut पे सर्च करें - VICKY TIWARI

हम हैं राही प्यार के... फिर मिलेंगे... चलते चलते...