19 February 2011

Day 31, Home, Jabalpur (M.P.)

यह कविता हमने 29 / 09 / 2007 को लिखी थी :


ज़िन्दगी क्या है
ये आज तक किसने जाना है
कोई बताये मुझे
की ये ज़िन्दगी
है क्या बाला
सही गलत होता क्या है
कोई बताये
क्या ये 'सही' महज़
किसी की आज्ञा की प्रतिपूर्ति
करना है
या फिर
'गलत' है
अपनी इच्छाओं
अपनी रुचियों को
पूरा करना
बता सकते हैं आप
की
अपने निर्णय लेना
कितना सही है
कितना गलत
और 
लोगों को 
वो कितना सही
कितना गलत लगता है
इस सवाल का जवाब
शायद
दुनिया के
किसी मनुष्य
किसी इंसान
के पास नहीं है
सबका एक ही जवाब रहता है
एक सा ही
"ये तुम्हारा decision है,
अपने फैसले खुद किया करो"
और अगर कुछ गलत हो जाये
तो
यह सुनने मिलता है
"ये तुम्हारा decision था,
अब तुम्ही निपटो इससे"
ऐसे में
कोई साथ खड़े होना भी
पसंद नहीं करेगा आपके साथ...


आपका, आपका ही तो

Vicky Tiwari

15 February 2011

Day 30, Office, Jabalpur (M.P.)



कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बैचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
मोहब्बत एक ऐसा सौ की पवन सी कहानी है
कभी कबीर दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आंसू हैं
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है
समंदर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को अपना तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
भ्रमर कोई कुमुदनी पे मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत मैं बदल बैठा तो हंगामा...

ll अज्ञात ll

09 February 2011

Day 29, Home, Jabalpur (M.P.)

~ Happy Chocolate Day Doston ~
दोस्तों, आज के आर्टिकल में शायद आप में से अधिकतर लोगों को अपने सवालों का जवाब मिल सकता है, इसे जब हमने पढ़ा तब तो मुझे ऐसा ही लगा...
क्यों होता है प्यार बार-बार 
फिर-फिर प्रेम गली का फेरा
दरवाज़े पर फिर कोई दस्तक हुई. अनमने मन से दरवाज़ा खोला तो फिर से भीग गया तन मन. प्रेम की बौछारों ने फिर से सराबोर कर दिया सर से पाँव तक. एक बार फिर ज़िन्दगी में आया प्यार. मन से उठा एक ही सवाल की क्यों होता है प्यार बार-बार... न कोई आवाज़, न हरारत, न जुम्बिश कोई. ऐसे ही चुपचाप एक रोज़, एक रिश्ते ने दम तोड़ दिया था. ढेर सारे खिलते हुए हरसिंगार के बीच अपने मन का हर कोना महकाने वाला प्रेम, जीवन के हर मोड़ पर साथ निभाने का वादा करने वाला प्रेम, एक साँस भी एक-दूसरे के बगैर न ले पाने वाला प्रेम. कब कैसे अचानक बेमानी हो गया.
सिकुड़ गया वादों का आसमान
हरसिंगार अब भी वैसे ही धरती को अपनी सुगंध और फूलों की चादर भर रहे थे, लेकिन ये खुशबू किसी के मन के कोनो को नहीं भर रही थी. सात जन्मों के वादों का आसमान अचानक सिकुड़ गया. दिल फिर अकेला हो गया. दुरुख, पीढ़ा, अवसाद, जुदाई, विरह, धोका, विरक्ति न जाने कितने ही शब्दों का जंगले उग आया आसपास. नहीं... प्रेम जैसे कोई चीज़ होती ही नहीं. प्रेम की बातें, झूठी बातें... यही लगने लगता है अचानक. उफ्फ्फ! कितनी पीढ़ा. दुनिया भर के साहित्य के न जाने कितने पन्ने असफल प्रेम के फलसफों से भर गए. असफल प्रेम... कितना विचित्र शब्द है ये. क्या सचमुच कोई प्रेम असफल होता है. क्या होता है सफल होना ? कब कोई प्रेम सफल है और कब असफल ये कैसे तय होगा ? कौन तय करेगा ?
प्रेम गली अति सांकरी
प्रेम की गली में एक अजीब सा खिचाव है. ये जानते हुए की इसकी डगर बड़ी पथरीली है, जोखिम भरी है फिर भी मन उसी ओर भागता है. बार-बार दिल टूटता है, फिर भी नए सिरे से प्रेम को अपनाने में ज़रा भी हिचक नहीं होती. एक ही जीवन में कितनी बार प्यार दस्तक दे सकता है. कितनी बार होता है प्यार... आखिर क्या खोजते है हम प्यार के नाम पर इसकी तलाश में भटकते रहते हैं उम्र भर ? इन सवालों के जवाब सदियों से हर कोई ढूंढ़ रहा है. मन बावरा होकर सडकों पर भटकने लगता है. वो कहते हैं न इश्क नचाये जिसको यार, वो फिर नाचे बीच बाज़ार. निराशा के गहनतम अंधेरों में भी प्रेम का दिया टिमटिमाता रहता है हमेशा.
धीम ताना ना ना ना... फिर एक बार
मन ही नहीं समूची प्रकृति नाच उठी. कितनी सुन्दर हो गयी धरती, कितनी सुरीली हो उठी हवाएं. अबकी जबकि प्रेम ने कंधे पर रखा हाथ, तो भर गए सारे पिछले घाव भी. ऐसा लगा मानो मरी हुई देह को साँसों ने छू लिया हो. इतना सुन्दर संसार तो पहले कभी लगा ही नहीं था की ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत भी हो सकती है. हर रोज़ प्रेम के गहराते रंग ज़िन्दगी के रंगों से रु-बा-रु करा रहे थे.
कहीं से कोई सदा नहीं आई
तुम आये तो पहली बार लगा ज़िन्दगी जीने को दिल किया... कहीं से कोई आवाज़ आई. लगा की अब तक जिसे प्रेम समझते रहे वो असल में प्रेम था ही नहीं. जिसके पीछे अनजाने चल पड़े थे कदम वो तो बस प्रेम की छवि थी. इलुजन. चाँद क़दमों के साथ में वो इलुजन भी ख़त्म हुआ. और इलज़ाम आया प्रेम के सर. उसे मिला धोखे का नाम. प्रेम सिर्फ प्रेम होता है. टूटने, बिखरने की पीढ़ा, धोखे का दर्द, दुरुख इन सबसे इतर वो जब होता है तो बस होता है. आप चाहें ना चाहें वो आपके साथ हो ही लेता है. बिना आपसे पूछे आपकी ज़िन्दगी का हिस्सा बन बैठता है. हमारी शक्सियत हमसे ही अनजानी हो ही जाती है. बस शर्त इतनी सी है की प्रेम सचमुच हो.
टूटती गयी प्रेम की डोर
साथी, जो साथ ना हो, तो भी उसके साथ का एहसास रहे. पसंद-नापसंद के अनुलोम-विलोम बहुत पीछे कहीं छूट जाएँ. ऐसा ही तो होता है प्रेम. एक दिन फिर ना कहीं से कोई आवाज़ आई, ना कोई शोर हुआ, बस पलकों पर कुछ बूँदें सजी और दुनिया थम गयी. लेकिन सचमुच सब कुछ ख़त्म हो गया. कैसे ख़त्म हो गया पता भी नहीं चला. ये क्या सिलसिला है ? ये कैसा प्रेम है ? क्या होता है प्रेम की जिसके आते ही दुनिया मुकुराने लगती है और जिसके जाते ही कायनात थम जाती है. फिर जीवन में प्रेम दस्तक देता है, फिर कहीं कुछ दरक जाता है. फिर मिलना, फिर बिछड़ना, फिर जुड़ना, फिर टूटना... प्रेम एक शाश्वत तलाश के रूप में लगातार जीवन में उपस्तिथ और अनुपस्तिथ होता रहता है.
दास्ताँ-ए-इश्क
प्रेम क्या होता है, और सफल प्रेम के मायने क्या है, ये दोनों बड़े सवाल हैं. सफल प्रेम का अर्थ विवाह होना है क्या ? तो प्रेम विवाह के बाद भी क्यों जारी रहती है प्रेम की खोज ? कहते हैं की मोहब्बत में मिलने-बिछड़ने  का कोई अर्थ नहीं होता. अमृता-इमरोज़ इसकी बड़ी मिसाल हैं. वो साहिर पे मरती रहीं और इमरोज़ उन पर. प्रेम की लौ को दिल के भीतर एक बार जला लेना और उसकी आंच में पूरे जीवन को सेंकते रहना. हर साँस महबूब का नाम. हर लम्हा उसी की इबादत.
कोई बेवफा नहीं होता
जो प्रेम इबादत बन जाता है वो कैसे एकदम से ख़त्म हो जाता है एक दिन ? कैसे टूट जाता है दिल ? कैसे असफल हो जाता है कोई प्रेम ? क्या कोई प्रेम असफल हो सकता है ? प्रेमी का ना मिलना ना मिलना तो सफलता का मीटर नहीं है. फिर किसे कहते हैं असफल होना ? दुनिया जिसे असफल प्रेम कहती है वो तो प्रेमी का नाम इतना ही है लेकिन जहाँ प्रेमी मिल जाए, वहां भी जब प्रेम की असफलता की कहानियां लिखी जा रही हों तो क्या कहा जायेगा ? जो टूटता है वो प्रेम का भ्रम होता है. टूटते सिर्फ प्रेम के भ्रम हैं, प्रेम कभी नहीं टूटता, कभी असफल नहीं होता. फिर क्यों हमें  भ्रम के टूटने पर इतना दुखी होते हैं. क्यों ना चल पड़ें प्रेम की तलाश में. दूसरी बार... तीसरी बार... चौथी... पांचवी बार, क्योंकि तलाश तो शाश्वत है, लेकिन सच ये भी है की अगर सच्चे प्रेम की एक बूँद ने भी कभी दमन में पनाह ली तो सारी उम्र उस एक बूँद की नमी में भीगे भीगे ही गुज़र जायेगी. उसके बाद किसी की तलाश की कोई गुंजाईश ही नहीं बचेगी. सचमुच नहीं.
प्यार आखिर कितनी बार
लोग कहते हैं इंसान जीवन में दो बार प्यार करता है. एक बार तब जब वो जवानी की देहलीज़ पर पाँव रखता है. कच्ची उम्र का मासूम प्रेम. ना कोई स्वार्थ, ना हिसाब किताब, ना आगा पीछा सोचने का समय. बस एक दूसरे का हाथ पकड़ पूरी धरती को अपने क़दमों से नापने का ख्वाब. आमतौर पे ये मासूम प्रेम ज़िन्दगी की राह में पीछे छूट जाता है. फिर आती है दूसरे प्यार की बारी. अब दिल को वो अच्छा लगता है जो दिमाग को भी भाता है. वैचारिक तालमेल, अच्छा-बुरा, व्यक्ति, व्यक्तित्व और भी ना जाने क्या. हो सकता है दूसरे प्रेम में भी ये सब कुछ ना हो, लेकिन परिपक्वता तो होती ही है. लेकिन जब ये प्रेम भी दरकने लगता है तो मन की उदासियाँ अमावास की रातों को भी मात देने लगती है. तब सवाल उठता है की आखिर क्या है जिसके खोज में मन फिर-फिर प्रेम की डगर पर दौड़ने को व्याकुल रहता है. हर बार यही आस की शायद इस बार मिलेगा सच्चा प्रेम.
तेरे इश्क की एक बूँद
सच्चा प्रेम... इसी की तलाश में मन जिंदगी भर भटकता फिरता है. इसी की तलाश में प्यार के नाम पर ठगे जाते हैं हम बार-बार. सच्चे प्रेम की चाह उम्र भर मन के किसी कोने में दबी रहती है. हम हमेशा चाहते हैं की सच्चे प्रेम की एक अनुभूति हमें एक बार तो छू ले... चाहे फिर बर्बाद ही क्यों ना हो जाये जीवन. कोई मिले तो जिसके नाम का सजदा करते हुए उम्र बीत जाए. जब बात प्रेम की हो तो इसमें शादी, ब्याह, मान मर्यादा, रीति रिवाज़, परमपराएं ये सब कुछ मायने नहीं रखता. प्रेम तो हमेशा से इन सारे अल्फाजों से बहुत ऊपर रहा है, रहेगा.
- स्वस्ति प्रभा

आपका, आपका ही तो
Vicky Tiwari

08 February 2011

Day 28, Home, Jabalpur (M.P.)

~ Happy Propose Day Doston ~
ग्लोबल प्रेम तीन मिनिट 
ग्लोबल समय में 'प्रेम' कि जगह 'सेक्स' ने ले ली है. इसी कारण 'प्रेम' परेशान है. प्रेम का फ्रेम सेक्सी हो चला है. नए-नए ग्लोबल वातावरण ने प्रेम कि कुंडली को बिगड़ दिया है. उसकी पहचान को प्रदूषित कर दिया है.
प्रेम अब घिसा-पिता पुराना दकियानूसी कुछ गंवई सा शब्द लगता है. कुछ समय पहले तक प्रेम एक 'क्रिटिकल' पद हुआ करता था कि 'प्रेम' हर किसी के बस का नहीं है. उसकी शर्तें कठोर हैं. वो एक 'चुनौती' है. जैसा कि जिगर मुरादाबादी ने कहा -
ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे 
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है...
कितना कठिन !
कितना चुनौती भरा !
प्रेमीजन 'कुछ कहते हुए भी' डरते हैं, क्योंकि प्रेम समाज में अपराध बराबर है. इस प्रेम का दुश्मन सारा समाज है. और प्रेम एक ऐसा बावला अनुभव है जो इस सबके बावजूद किया जाता है. वो तब भी होता जब समाज उसे करने कि आज्ञा नहीं देता. प्रेम 'प्रोटेस्ट' कि तरह है. इस क्लासिकल प्रेम में 'सेक्स' का बखान नहीं होता. क्लासिकल प्रेम कि यात्रा इस सूत्र कि तरह होती है - 'प्रेम - शादी - सुहागरात - बच्चे - सुखी - ग्रहस्ती' यानी छोटा परिवार सुखी परिवार. यही उसकी सामाजिकता है. वो पवित्र सामाजिक बंधन है. पवित्र रस्म है. मंगलमय है एवं पवित्र संबंध कारक है. क्लासिकल प्रेम 'लाइट' में होता था, लेकिन लाइट जाने के बाद आगे क्या होता था वो सब कुछ सचित्र कोकशास्त्र कि पीली जिल्द वाली किताबों में मिलता था जिन्हें adult होने पर ही देखा, पढ़ा जा सकता था. प्रेम तब 'ए' certificate लिए रहता था. ये पुराने स्टाइल का सिर्फ समझदारों, वयस्कों के लिए reserved प्रेम था, जिससे कई पीढ़ियों ने प्रेम करना सीखा. 'थोडा सा रूमानी हो जाएँ' होना सीखा. प्रेम गीत गाना सीखा. मरना जीना सीखा.
एक परिवर्तन साफ़ दिखलाई पड़ता है. अब बेहद अमीर की लड़की बेहद गरीब लड़के से प्रेम करने की गलती करती नज़र नहीं आती. ये दिन नयी middle क्लास के नए प्रेम के दिन हैं. अब अमीर लड़के/लड़कियों का गरीब लड़कियों/लड़कों से प्रेम अधिक नज़र नहीं आता. ये प्रेम अपने वर्ग में ही होता रहता है, वर्ग बाहर नहीं होता.
अब प्रेम का मतलब सेक्स है. ग्लोबल दुनिया कि दुर्निवारता ये है कि प्रेम अब नितांत 'लौकिक' और 'फिजिकल' नज़र आता है. प्रेम का मूल काम है. कामना है. फ्रायड का 'लिबिडो' है. इस रास्ते प्रेम सेक्स है.
अब प्रेम परिवार तक नहीं पहुँचता. प्रेम अब एक स्थाई अमर मूल्य न होकर तदर्थ एडहोक मूल्य है, जिसमें प्रेम की मात्रा कितनी है और सेक्स कि मात्रा कितनी ? ये पता लगाना मुश्किल है. प्रेम अब भी अनमोल है, क्योंकि अब वो जीवन से 'खो गया' है.
- सुधीश पचौरी 


आपका, आपका ही तो

Vicky Tiwari


07 February 2011

Day 27, Home, Jabalpur (M.P.)

~ Happy Rose Day Doston ~
दोस्तों, कल मैं अपने भैया से बात कर रहा था... उन्होंने मुझसे एक बहुत अच्छी बात कही, वो ये की तुम दूसरों के लेख की जगह अपने लेख लिखो, ज्यादा अच्छा रहेगा क्योंकि वो बात तुम्हारे दिल की होगी. मुझे उनकी ये बात बहुत अच्छी लगी और हम उसे मानेगे भी 14 onwards... तब तक यानी आज 7 से लेकर 13 तक आप दूसरों के लेख पढ़िए ताकि आप उनमें और मेरे लेखों में अपने सुझाव दे पायें कि हम कहाँ तक प्यार को समझ पाए हैं क्योंकि व्यक्ति जो भी लिखता है उसे अपनी लेखनी को और परिष्कृत करने के लिए आपने पाठकों की राय की बहुत ज़रुरत होती है -

मैं प्यार की वेदी पर चढ़ा दूंगी ये दुनिया 
'सखी चिंता कहते हैं किसे, सखी यातना कहते हैं किसे, तुम जो रटते रहते हो दिन-रात, प्यार-प्यार, सखी प्यार की परिभाषा क्या' रविंद्रनाथ टगोर के इस गाने में एक सहेली दूसरी सहेली से यही पूछती है की प्रेम की परिभाषा क्या है ? अब प्रेम की कोई एक परिभाषा हो तो बताएं. एक मायना हो तो समझ आये. जितना सरल शब्द है प्रेम, उतना ही मुश्किल है इसे समझना.
प्रेम सरेंडर है. अगर निजी बात करूँ तो प्रेम समर्पण है. अगर आप किसी से प्रेम करते हैं तो समर्पण का भाव खुद-ब-खुद आ जाता है. आप 'मैं' और 'अहम्' से ऊपर उठते हैं. त्याग स्थाई भाव बन जाता है. सब कुछ न्योछावर कर देना चाहते हैं उस शख्स पर, जो आपको निहायत अज़ीज़ है. जिसकी एक मुस्कराहट पर आप सारे गम भूल उसके साथ मुस्कुराने लगते हैं. जिसकी खनखनाती हंसी से आपका दिन खुशगवार हो जाता है. वो उदास हो तो आपका चेहरा भी स्याह पड़ जाता है. साथी की जो कमियां कभी आपको खलती थी, धीरे-धीरे वही उसका स्टाइल लगने लगती हैं.
प्रेम संघर्ष है. अनवरत. कभी ख़त्म न होने वाला संघर्ष, दो प्रेमी सात फेरे ले लें तो प्यार सफल मान लिया जाता है. कम-से-कम हिंदुस्तान में तो प्रेम की परिणिति शादी ही है. सोहनी-महिवाल, हीर-रांझा और लैला मजनू ने प्रेम किया, लेकिन वो इसे शादी के अंजाम तक न ला पाए. टीस रह गयी. इसलिए ये दुखांत है.
लिओ तोल्स्तोय मानते हैं की 'प्रेम ही जीवन है, मैं जो कुछ भी समझ पाता हूँ, उसकी वजह सिर्फ प्रेम ही है.'
अमेरिकी कवियत्री निकी जीओवानी अपनी एक कविता मैं कहती हैं -
खूबसूरत आमलेट लिखा मैंने
खाई एक गरम कविता
तुमसे प्रेम करने के बाद
गाडी के बटन लगाये
कोट चलाकर मैं
घर पहुंची बारिश मैं
तुमसे प्रेम करने के बाद
लाल बत्ती पर चलती रही
रुक गयी हरी होती ही
झूलती रही बीच मैं कहीं
यहाँ भी
वहां भी
तुमसे प्रेम करने के बाद
समेत लिया बिस्तर मैंने
बिछा लिए अपने बाल
कुछ तो गड़बड़ है
लेकिन मुझे नहीं परवाह
उतार कर रख दिए दांत
गाउन से किये गरारे
फिर खड़ी हुई मैं
और लिटा लिया खुद को
सोने के लिए
तुमसे प्रेम करने के बाद
पाब्लो नेरुदा के लिए प्रेम कभी न ख़त्म होने वाला भाव है, वो कहते हैं - 
अब मैं उसे प्यार नहीं करता हूँ
उसमें कोई शक नहीं
लेकिन शायद उसे प्यार करता हूँ
जर्मन कवि बर्तोल्त ब्रेकथ प्रेम को कमजोरी से आंकते हैं. ये बानगी देखिये -
कमजोरियां तुम्हारी कोई नहीं थी
मेरी एक थी, मैं करता था प्यार
भारत की एनी जैदी कहती हैं की -
प्रेमी करीब आना चाहे
बिलकुल करीब
तो गहरी साँस बनाकर थाम लो उसे
तब तक, जब तक टूट न जाओ

सभी रचनाओं में एक ही भाव है - प्रेम का भाव लेकिन फील सबका अलग अलग है. कहीं कहीं प्रेम सुरक्षा भी है. प्रेम देता है होंसला, प्रेम जनता है आपकी हिम्मत.

प्रेम स्वार्थ है. कहता है की जो हमारा है, वो हमारा होकर ही रहे जीवन भर. प्रेम सिखलाता है किसी पर अपना हक़ समझना. और कई दफा मजबूर कर देता है हर बात मानने के लिए. फूल की फरमाइश करें तो आपका साथी पूरा बगीचा उठा लाये, मन की किताब पढ़ ले. आँखों में झांकते ही दिल की बात समझ जाए. अपेक्षाएं बढ़ता है प्रेम. डिमांड पूरी होती रहे तो सब अच्छा. कमी आयी नहीं की प्रेम का परा नीचे उतरना शुरू. लेकिन स्वार्थ है भी तो क्या हुआ ? प्रेम तो है. मोहब्बत की बयार बहती रहे तो खुदगर्जी की धूल धीरे-धीरे उड़ जाएगी. स्वार्थ इतना हावी न हो जाए की प्रेम बंधन लगने लगे.
प्रेम वासना है. प्रेम शरीरी है. कहते हैं प्रेम की गहराई मैं कहीं-न-कहीं शारीरिक घनिष्टता छिपी है. कहते हैं दो शरीरों का मिलन आत्माओं का मिलन होता है. कहते हैं अन्तरंग होकर एक-दूसरे से कंनेक्ट हुआ जा सकता है. एक-दूसरे के प्रति गूढ़ प्रेम को महसूस किया जा सकता है. प्रेम के पलों में नीरस से नीरस व्यक्ति भावुक हो उठता है. शायद इसीलिए सम्भोग को प्रेम की पराकाष्ठा मानते हैं. वहीँ एक प्लेटोनिक प्रेम भी है. आउट ऑफ़ द वर्ल्ड. कोई चाह नहीं. कोई कंडीशन नहीं. मन से मन का रिश्ता. दिल से दिल को राह. बिना तार का कर्रेंट है प्लेटोनिक प्रेम.
प्रेम को लेकर भ्रान्ति है. कहते हैं की एक बार प्यार हो जाए तो ता उम्र रहता है. मेरा मानना है की प्यार जन्म लेता है, प्यार जवान होता है, प्यार भूढ़ा होता है और फिर प्यार मरता भी है, लेकिन हाँ, प्यार में मर-मर कर जिंदा होने की ताक़त है. प्यार जो खुद को मुक्त करता है फिर प्यार करने के लिए. प्यार के भी अपने मौसम हैं.
लब्बोलुआब ये की प्यार को किसी परिभाषा में बंधना मुशकिल है, बेमानी भी. प्यार तो सिर्फ प्यार है. एक दरिया है बहता हुआ, निरंतर. इसके बहने में ही इसकी सुन्दरता है. इसके बहने में ही प्राण हैं. इसके बहने में ही जीवन है. हमारा होना ही इस बात का सबूत है की प्यार है. हमारा साँस लेना ही प्यार है. बस... यही तो है प्यार.
- माधवी शर्मा गुलेरी 


आपका, आपका ही तो
Vicky Tiwari

06 February 2011

Day 26, Home, Jabalpur (M.P.)

दोस्तों, एक हफ्ते बाद VALENTINE DAY  है... हर बार कि तरह इस बार भी कई लोग, कई संस्थाएं इसका विरोध करेंगे... लेकिन इतना समय गुज़र जाने के बाद भी प्रेम का ग्राफ गिरा नहीं, हमेशा बढ़ा ही है... प्रस्तुत लेख इस बार कि अहा ज़िन्दगी प्रेम विशेषांक से हैं जिसे निम्न साहित्यकारों ने लिखा है. VALENTINE DAY तक आपको इस विशेषांक के गुलदस्ते से कुछ न कुछ पढ़ता रहूँगा... हमने पढ़ा ये और सोचा कि क्यों न इससे आपसे बांटा जाए... सुना है कि बाँटने से भी तो प्रेम बढ़ता है - देवाशीष प्रसून, रश्मि रमानी... तो प्रस्तुत हैं इनके लेख के कुछ अंश और अंत में पाब्लो नेरुदा की एक प्रेम कविता भी है :

"हाँ, तुम मुझसे प्रेम करो जैसे मछलियाँ लहरों से करती हैं,
...जिनमें वो फंसने नहीं आती,
जैसे हवाएं मेरे सीने से करती हैं,
जिनको वो गहराई तक दबा नहीं पाती,
तुम मुझसे प्रेम करो जैसे मैं तुमसे करता हूँ."

"अफ़सोस ये है कि हमारे समाज में फिल्मों और अधकचरे साहित्य कि बदौलत एक बहुत भ्रामक प्रचार ये भी रहा है कि प्रेम, जीवन में बस एक बार होता है, जो कि यकीन मानिये सरासर झूठ है. ऐसा वो लोग सोचते हैं जिन्हें लगता है कि प्रेम किसी ख़ास शख्सियत से ही किया जा सकता है और इस मामले में दुनिया से वे मतलब नहीं रखते, लेकिन सही आशिक ये सोचते हैं कि जीवन में किया जाने वाला आपके हिस्से का प्यार दरअसल पूरी कायनात से कि गयी आपकी मोहब्बत है, न कि किसी एक ख़ास इंसान से. जो लोग सही में प्रेम करते हैं या प्रेम को जीना जानते हैं वो किसी 'एक व्यक्ति विशेष' के इनकार से या उनकी जुदाई से खुद को कुंठित नहीं करते.
- देवाशीष प्रसून 

" क्या कारण है कि प्रेम होने पर ह्रदय में हजारों-हज़ार फूल खिल उठते हैं, रक्त का कण-कण उत्तेजना से भर जाता है, और हर साँस शरीर में नए पुलक का संचार करती है, प्रेमानुभूति दिव्य आध्यात्मिक आनंद से साक्षात्कार करवाती है, पवित्र प्रेम से प्रेरित शारीरिक सम्बन्ध मन कि प्रसन्नता और आत्मिक आनंद का विकास करते हैं, प्रेम केवल ज्वाला से ज्वाला का मिलन नहीं, अपितु आत्मा कि पुकार है.
धारणाओ और स्थितियों में कितना विरोधाभास होता है, ये इसी से स्पष्ट है कि प्रेम का तरंगाघात महत्वपूर्ण और शक्तिशाली होने पर भी, प्रगतिशील और आधुनिक भारतीय समाज में आज भी, प्रेम सम्मानीय स्थिति में नहीं है, विशेषतः स्त्री-पुरुष का प्रेम.
प्रेम कोई ऐसी वास्तु नहीं है, जिस पर हमारा वश हो, प्रेम का अनुभव मात्र पुस्तकों को पढ़कर या दूसरों के अनुभव जानकार नहीं किया जा सकता. ये एक निजी अनुभूति है. अकेले होने पर, उदास होने पर या असहाय होने पर या असहाय स्थिति में ह्रदय उद्वेलित होने पर, ग्लानी होने पर, व्यक्ति प्रेम की आवश्यकता को तीव्रता से अनुभव करता है. प्रिय पात्र के समीप होने पर संतोष का अनुभव करता है. कई बार तो प्रेम का आनंद व्यक्ति में ऐसी तृप्ति, उर्जा और सहस भर देता है की वो चुनौतियों का सामना धेर्यपूर्वक करता है. थका डालने वाला बोझ हल्का हो उठता है और कोई भी कार्य असंभव नहीं लगता है. 
प्रेम का रोमांच भी कम नहीं, जिन आत्माओं में रोमांच का अनुभव करने की शक्ति और इसे प्राप्त करने की तड़प है, उनके लिए प्रेम प्राप्ति हेतु, ये जीवन भी कुछ नहीं. प्रेमी से मिलन के मार्ग में लाख बाधाएं हों, आपार कष्ट हों और चुनौतियाँ हों पर किसे परवाह है इन सबकी ?
आज आधुनिकता की ओर भागते युग में जबकि यौनाचार स्वछंद होता जा रहा है, वो मनुष्य के प्रगतिशील होने का नहीं, आदिम होने का द्योतक है, क्योंकि जिस यौन आनंद की कोई स्मृति न हो, वो थोथा है, मृगतृष्णा है. पर शाश्वत प्रेम जो नित नूतन है, चिरंतन है - कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है, उलटे हर प्रेम, भावनाओं के खजाने को और भरपूर कर जाता है. सच्चे प्रेम को साथी स्तर पर नहीं लिया जा सकता. आत्म-समर्पण पर आधारित सच्चा प्रेम अत्यंत सफल होता है, क्योंकि न इसमें अपेक्षा होती है, न कोई प्रतिदान या मूल्य. प्रेम का वासना से कोई सरोकार नहीं, वासना का विस्फोट न होने की स्थिति में वो पवित्र है. उसकी तीव्रता की शक्ति के अधीन नहीं होने पर उमंगपूर्ण और आदर्श आनंद का निर्माण करती है.
एक आदत का छूटना उतना कष्टकारी नहीं, जितना एक साथी का bichadna, दुखांत होने पर भी प्रेम की सुकुमारता नष्ट नहीं होती, प्रेम में त्रुटियाँ ढूंढने वालों की आलोचना-विवेचना के बावजूद उसकी महत्ता निर्विवाद है, वो मानव-जीवन का सर्वोच्च वरदान है.
- रश्मि रमानी 

कविता -
स्त्री देह
स्त्री-देह, सफ़ेद पहाड़ियां, उजली राने 
तुम बिलकुल वैसी दिखती हो जैसी ये दुनिया
समर्पण में लेटी - 
मेरी रूह किसानी देह धंसती है तुममें
और धरती की गहराई से लेती एक वंशवृक्ष उछाल.

अकेला था मैं एक सुरंग की तरह, पक्षी भरते उड़ान मुझमें
रात मुझे जलमग्न कर देती अपने परस्त कर देने वाले हमले से
खुद को बचने के वास्ते एक हथियार की तरह गढ़ा मैंने तुम्हें,
एक तीर की तरह मेरे धनुष में, एक पत्थर जैसे गुलेल में

गिरता है प्रतिशोध का समय लेकिन, और मैं तुझे प्यार करता हूँ
चिकनी हरी कई की रपटीली त्वचा का , ठोस बेचैन जिस्म दुहता हूँ में
ओह! ये गोलक वक्ष के, ओह! ये कहीं खोई सी आँखे,
ओह! ये गुलाब तरुणाई के, ओह! तुम्हारी आवाज़ धीमी और उदास!

ओ मेरी प्रिय-देह! मैं तेरी कृपा में बना रहूँगा
मेरी प्यास, मेरी अंतहीन इच्छाएं, ये बदलते हुए राजमार्ग!
उदास नदी-तालों से बहती सतत प्यास और पीछे हो लेती थकान,
और ये असीम पीढ़ा!
- पाब्लो नेरुदा 

आपका, आपका ही तो
Vicky Tiwari

03 February 2011

Day 25, Home, Jabalpur (M.P.)

प्रस्तुत लेख इस बार की 'अहा! ज़िन्दगी' में छपे एक लेख का हिस्सा है, जिसे में आप सबके साथ बांटना चाहता हूँ... विषय है - प्रेम :

'... तब अल्मित्र ने कहा, 'हमसे प्रेम के विषय में कुछ कहो." ... तब उस देवदूत ने अपना मस्तक ऊँचा किया और लोगों पर दृष्टि डाली. सब पर शान्ति छा गयी और गुरु-गंभीर स्वर में उसने कहा - "जब प्रेम तुम्हें अपनी ओर बुलाये तो उसका अनुसरण करो यद्यपि उसकी राहें विकट और विषम हैं, जब उसके पंख तुम्हें ढँक लेना चाहें तो तुम आत्मसमर्पण कर दो, भले ही उन पंखों के नीचे छिपी तलवार तुम्हें घायल करे. और जब वो तुमसे बोले तो उसमें विश्वास रखो, भले ही उसकी आवाज़ तुम्हारे स्वप्नों को चकनाचूर कर डाले. क्योंकि प्रेम जिस तरह तुम्हें मुकुट पहनाएगा, उसी तरह सूली पे भी चढ़ाएगा. जिस तरह वो तुम्हारे विकास के लिए है, उसी तरह तुम्हारी काट-छांट के लिए भी. अनाज की बालियों की तरह प्रेम तुम्हें अन्दर भर लेता है. तुम्हें नंगा करने के लिए कूटता है. तुम्हारी भूसी दूर करने के लिए तुम्हें फटकता है. तुम्हें पीस कर श्वेत बनाता है. तुम्हें नरम बनाने गूंथता है. और तब तुम्हें अपनी पवित्र अग्नि पर सेंकता है, जिससे तुम प्रभु के पवन थाल की पवित्र रोटी बन सको... - खलील जिब्रान 

प्रेम की भावना को इस सतर्क दृष्टि से जीना कि वो अंतत: सुखद होगी या दुखद, प्रेम है ही नहीं. जैसा की पहले कहा गया, प्रेम में सब कुछ समर्पित कर देना ही सब कुछ पाना है. एक उन्मुक्त नदी की तरह हरहराती ये भावना अंतत: एक गंभीर और व्यापक समुद्र बनेगी. बस, सुखद या दुखद जैसा कुछ नहीं...

प्रेम इतना शक्तिशाली होता है कि देह को चीरता हुआ आत्मा के तहखाने तक जा पैठता है. देह तो उसको उस तहखाने तक पहुंचाने में सिर्फ पुल का काम करती है. अगर प्रेम देह में ही गुम्फित हो होकर रह जाए तो उसे प्रेम कि संज्ञा नहीं दी जा सकती, क्योंकि बाज़ारों में भी देह में डूबने के लिए देह तो मिल ही जाती है...

आपका, आपका ही तो...
Vicky Tiwari