हम लोग एक नाटक की reading कर रहे हैं - तीसवीं शताब्दी। आज उसी का मटेरिअल ढूंढ़ रहा था गूगल पर। काफी सारे फोटो मिले, उन ऑफिसर्स के तो सब मिल गए जिन्होंने हेरोशिमा - नागासाकी पर बम गिराया था। बहुत भयानक photographes हैं जब बोम्ब गिराया गया था तब के... जली हुई dead bodies बिखरी पड़ी थी... पूरा देश तबाह हो गया था। युद्ध नहीं होने चाहिए, इससे किसी का भला नहीं होता। हाँ, नुक्सान सबका होता है फिर भले चाहे वो उस युद्ध में शामिल हो अथवा नहीं। बी.बी.सिंह सर ने कहा था की इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं घट रहा है जिससे आपका मतलब न हो। इसलिए कहीं न कहीं हम सभी उस चीज़ के भुक्तभोगी भी हैं और हमी ज़िम्मेदार भी हैं इन्ही तरह के युद्धों के -
"इन्द्रधनुष के आकर्षण में नीलगगन को ताकें कब तक,
पाषाणों के इस युग में हम खुद को तराशें कब तक..."
पाषाणों के इस युग में हम खुद को तराशें कब तक..."
कल इंडियन आईडल के बारे में बात करेंगे... जाने से पहले प्रार्थना हो जाए :
"कोई आहट कोई दस्तक कोई आवाज़ नहीं,
तू दबे पाँव ख्यालों में चली आती है,
कभी लगता है यूँ के चुपके से तू,
पेहलू में बैठ जाती है,
आके अब तेरा जाना बुरा सा लगे..."
तू दबे पाँव ख्यालों में चली आती है,
कभी लगता है यूँ के चुपके से तू,
पेहलू में बैठ जाती है,
आके अब तेरा जाना बुरा सा लगे..."
और
"जितनी शिद्दत से हमने चाहा है तुम्हें,
या खुदा इस तरह कोई किसी को न चाहे..."
या खुदा इस तरह कोई किसी को न चाहे..."
दसविदानिया...
जय Theatre...