27 December 2010

Day 23, Home, Jabalpur (M.P.)

Date & Day - 25 / 12 / 2010, Saturday...
Place - Dad's Office...
Time - 3:30 to 05:00 PM...


आज (25/12/2010) पापा के एक फ्रेंड आये थे... जिन्हें अपने काम धाम छोड़ कर दूसरें के लिए फ़िक्र करने का बहुत टाइम है... इसलिए लगे मेरी शादी के बारे में बुरा बुरा बोलने, अच्छा तो मैंने पापा के किसी फ्रेंड के मू से आज तक नहीं सुना... really... उनके हिसाब से दुनिया में अगर मेरी शादी न हुई तो वो भूके मर जायेंगे ऐसा लग रहा था उनके कहने से... खेर, उन्होंने अपनी ये बात किसी तरेह ख़त्म की तो एक नया टोपिक छेड़ दिया - पापा कि गाडी का... जो हमने फोर्सफुली दिलवाई है पापा को, सुजुकी एक्सेस... वो बोलने लगे पापा से कि - कुमार, ये तुमने गलत गाडी ले ली... स्कूटी लेना थी हलकी भी है और सस्ती भी... चलो भई, ये बात भी ख़त्म हुई तो फिर एक नया टोपिक छेड़ दिया कि हम और हमारे पापा कब तक रहते हैं ऑफिस में... तो पापा कहने लगे कि ये (यानि मैं) ६ बजे तक रहता है ऑफिस में, उसके बाद अपने दोस्तों के साथ बैठ जाता है...
इतनी देर कि बातचीत में मुझे ये चीज़ बहुत बुरी लगी, बहुत दिल दुख गया ये सुन कर कि आज भी THEATRE को लोगबाग अपनी बातचीत का हिस्सा ही नहीं मानते... पापा मेरी कुंडली शादी के लिए जब भी कहीं भेजते हैं, तो उसमें से वो theatre वाला पन्ना अलग कर लेते हैं जिसमें ये लिखा है की मैं theatre करता हूँ और इतने नाटक कर चुका हूँ, मेरी उपलब्धियों को दूसरों से छुपाते हैं वो... अगर किसी को पता चल जायेगा की मैं नाटक करता हूँ, theatre करता हूँ, ड्रामा करता हूँ तो क्या मेरी शादी नहीं होगी... नहीं होगी तो नहीं होगी... मुझे ज़रुरत भी नहीं ऐसे फ़िज़ूल के रिश्ते की जो मुझे मेरे सपने से अलग कर दे... लेकिन, ऐसा क्यों है... बुरा इसलिए भी लगा कि दोस्तों के साथ बैठने का एक और भी मतलब निकलता है - दारु पीता है अपने दोस्तों के साथ...
यारों... कम से कम MERA THEATRE शराब से तो कहीं ज्यादा अच्छा है ही... मुझे theatre में जीने का मकसद मिला है, मुझे theatre ने क्या दिया है, ये शायद मैं नहीं बता पाऊं क्योंकि शायद अभी तक ऐसे शब्द ही नहीं बने जो मेरी जुबां बोल सकें... मुझे आप सब कि हेल्प चाहिए... जब भी कभी आपके शहर में नाटक हों, उन्हें देखने ज़रूर जाएँ... please... मैं और मेरे साथी ये प्रूव करना चाहते हैं कि THEATRE से भी घर चलाया जा सकता है... बहुत से लोगों के घर तो चल भी रहे हैं... मैं तो यहाँ तक कहूँगा की THEATRE से ज्यादा मानसिक श्रम मांगनेवाला काम की है ही नहीं...


Jai Theatre  

23 December 2010

Day 22, Office, Jabalpur (M.P.)

प्यार कभी नाप तौल के, थोडा थोडा करके, कंजूसी से नहीं, शर्तों पे नहीं करना चाहिए या अगर आप पहले से ही प्यार में हैं तो किन्ही भी परिस्तिथियों के चलते अपने प्यार का अपने हाथों गला न घोंटें... विश्वास रखें अगर आपका प्यार सच्चा है तो आपकी बड़ी से बड़ी परेशानी या परिस्तिथि चुटकी बजाते ही, जल्दी ही हल हो जाएगी. बस आपको एक काम करते चले जाना है - अपने प्यार की दौलत 'अपने प्यार' पर लुटाते चले जाईये... अगर आप सोच समझ कर प्यार करेंगे कि  हमारे परिवार वाले नहीं मानेगे या हम दोनों को आगे चल कर प्रॉब्लम हो सकती है या अगर हमारे घरवाले नहीं माने तो हम शादी नहीं करेंगे वगेहरा वगेहरा तो ऐसे तो इस दुनिया से प्यार ख़त्म हो जायेगा.. और एक बात बताऊँ - ऐसा हो भी रहा है... दुनिया से प्यार ख़त्म हो रहा है... सच मैं... देख रहा हूँ अपने आस पास कि लोग अब अपनी शर्तों पे प्यार करने लगे हैं और अगर प्यार करते भी हैं तो इज़हार नहीं करते... भई देखो, प्यार भी एक फीलिंग है गुस्से या नाराज़गी कि तरह... वो एक्सप्रेस होना चाहती है, दुनिया की कोई भी फीलिंग एक्सप्रेस होना चाहती है... उसे होने दीजिये एक्सप्रेस... नहीं तो उस फीलिंग का कोई मतलब नहीं है... वो फीलिंग ही क्या जो एक्सप्रेस न हो पाए... दिल मैं रखे रहने से अच्छा की उसे एक्सप्रेस कर दो... जाओ यार, बोल दो उससे अपने दिल कि बात, भले ही तुम्हारा 'प्यार' किसी और को प्यार करता हो, तो भी, जाओ, जाके बोल दो उससे अपने दिल कि बात... DON'T EVER LET YOUR LOVE GO... Please... I beg you... Mujhe bahut dukh hota hai jab koi kisi se alag hota hai...

Vicky Tiwari


17 December 2010

Day 21, Home, Jabalpur (M.P.)

ये मेरी नयी कविता है जिसे हमने कल (१७/१२/२०१०) ही लिखा है. प्यार... बड़ा ही खूबसूरत एहसास होता है ये... इस कविता को मैंने भावनाओं में रहकर लिखा है, इसलिए इसमें आपको मोहब्बत ही मोहब्बत मिलेगी... इस कविता को इसकी तासीर समझते हुए पढियेगा, आपको अच्छा लगेगा वरना मेरा लिखना बेकार जायेगा :

Wo Do Til Wali Ladki


वो
दो तिल वाली लड़की
मासूम
खूबसूरत
लेकिन
हैरान
परेशां
भ्रमित भी
इतनी सुन्दर
की
अपनी
खूबसूरती की दौलत
गाल पे पड़ने वाले
गड्ढे पर
दूसरे गाल पे
दो काले पहरेदार
बैठा रखे हैं
वो जिस दिन
मेरी ज़िन्दगी में आई
वैसे ही एक दिन
चली भी गयी
शायद
वो दो पहरेदार ही
उसे
ले गए
मुझसे दूर
लेकिन
जाने से
कुछ दिन पहले
अपने
शरीर की छुअन को
मेरे शरीर से 
एकाकार कर
मेरे होठों पर
अपने होठों का
रख भार
फिर लौट कर आने का
वादा कर
मुझे मेरे
अपने होने का
एहसास करा गयी
वो
दो तिल वाली लड़की...



Vicky Tiwari
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:: Thought for the day ::
प्यार कभी नाप तौल के, थोडा थोडा करके, कंजूसी से नहीं करना चाहिए या अगर आप पहले से ही प्यार में हैं तो किन्ही भी परिस्तिथियों के चलते अपने प्यार का अपने हाथों गला न घोंटें... विश्वास रखें अगर आपका प्यार सच्चा है तो आपकी बड़ी से बड़ी परेशानी या परिस्तिथि चुटकी बजाते ही, जल्दी ही हल हो जाएगी. बस आपको एक काम करते चले जाना है -
अपने प्यार की दौलत 'अपने प्यार' पर लुटते चले जाईये...

07 December 2010

Day 20, Home, Jabalpur (M.P.)

अगली कविता हमने ३० / ०३ / २००५ को लिखी थी... समय - एक उदास दोपहरी 

Tum...


तुम
जिस दिन से
मुझसे मिली
तो
लगा
जैसे
चलते जीवन में
इक मुस्कराहट आ गयी हो
मेरे जीवन का
सबसे खूबसूरत
सच हो
तुम
कभी
मेरे जीवन का सपना थी
तुम
लेकिन...
अब,
ज़िन्दगी
सिर्फ एक
सुहानी शाम बन कर रह गयी
तुम्हें पाने कि वो उम्मीद
बस...
एक ख्वाब बनकर
रह गयी...

Vicky Tiwari

:: Thought for the day ::
सफलता अगर सपनों की कीमत पर हासिल कि जाये तो उसका कोई अर्थ नहीं... 

06 December 2010

Day 19, Home, Jabalpur (M.P.)

Main Aksar Dil Kho Baithta hun...


वो
कहती है कि
में
अक्सर दिल खो बैठता हूँ
वो
क्या जाने कि
में
इक खूबसूरत नियम
पर चलता हूँ -
"प्रेम सम्बन्ध हो तो राग है,
स्वाभाव हो तो वीतराग है"
ये सुन
वो कहती है
तुम तो बड़े आशिकाना
हो गए
उसके द्वारा
कागज़ पर
होठों से किये
दस्तखत ख़त हो गए
हम तो
बिन मारे ही
आह़त हो गए
और इस तरह हम
श्रीमान आशिक हो गए...
Vicky Tiwari
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Thought for the day
If love is not madness, then its not love...
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05 December 2010

Day 18, Home, Jabalpur (M.P.)

Wo Gazal...


उसने
कागज़ को
होठों से दबाकर
जो फेंका तो
लिपिस्टिक ग़ज़ल हो गयी
और
मैंने उसे उठा कर
जो ज़हन से लगाया
तो वो
उम्र कि
सबसे बड़ी
धरोहर हो गयी
खुदा का फज़ल हो गयी
मीरा का भजन हो गयी
अब मेरी ज़िन्दगी
खुद एक ग़ज़ल हो गयी...


Vicky Tiwari


Thought for The DayAap agar har kaam faayede ke liye karte hain to yaad rakhiye aap ab tak kaee baar nuksaan utha chuke hain...


04 December 2010

Day 17, Home, Jabalpur (M.P.)

Aaj Dil Ne Socha Yun...

आज दिल ने सोचा यूँ
कि
किसी अपने को क्या दूँ
उसे में
कैडबरी देरी मिल्क दूँ
'रिश्तों की मिठास वाली'
या फिर
पेप्सी दूँ
क्योंकि
'ये दिल मांगे मोरे'
फिर सोचा
एयरटेल की सिम दूँ
जिससे
'एक्सप्रेस यौर्सेल्फ़' किया जा सके
क्यों न
विल्स दूँ
अरे वी आर 'मेड फॉर याच अदर' यार
कुछ समझ नहीं आ रहा था
मन नहीं मन तो सोचा की
कोलगेट दूंगा
'ये है हमारा सुरक्षा चक्र'
अंत में तय हुआ की उसे
एल आई सी की पालिसी दूंगा
'ज़िन्दगी के साथ भी,
ज़िन्दगी के बाद भी...'

Vicky Tiwari
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These are the links of some photos on my facebook a'c... Plz do see them... Happy Blogging... Bye Amigos

28 November 2010

Day 16, Home, Jabalpur (M.P.)

Badle Main...

हमने हमेशा से यही
सुना है
जो हम दुनिया को
देते हैं
वो हमे दुगना चौगुना होकर हमे
मिलता है
चाहे वो पैसा हो या इज्ज़त
हमे सब कुछ बढ़ चढ़ कर
वापस मिलता है
पर
ऐसा क्यूँ होता है
कि
जब हम
किसी को 
प्यार करते हैं
तो वो
बहुत होकर नहीं मिलता
आखिर क्यूँ...
है कोई जवाब ?

प्यार पे में मरूं
प्यार पे तुम भी मरो
फूल सा में झरूँ
फूल सी तुम भी झरो
एक वसीहत नस्ल - ए - कल के नाम लिख एहसास कि
दस्तखत एक तुम भी करो
दस्तखत एक में भी करूँ...

Click on the link given below to see me in my new play - Shining India...

Vicky Tiwari

26 October 2010

Day 15, Office, Jabalpur (M.P.)

VRIDDH

वृद्ध
इस शब्द से
हम
जाने क्या समझ बैठते हैं
समझते हैं
कि ये एक
बूढी,
कमज़ोर,
लाचार सी
दिखने वाली एक काया है
लेकिन नहीं
सिर्फ उम्र कि वृद्धि को
वृद्ध करक देना उचित नहीं
ये वृद्धि है उसके अनुभवों कि
वृद्धि है उसकी जिम्मेदारियों कि
वृद्धि है उसके माथे कि शिकन कि
इस वृद्ध कि आज्ञा कि
avagya कर हम भूल जाते हैं
कि
एक दिन
हम bhi
होंगे
वृद्ध...

 SAMAAPT

aapka...
aapka hi to...

विक्की तिवारी 

24 October 2010

Day 14, Office, Jabalpur (M.P.)

NASHA - 2

रिन्दों से सुना है कि
जीवन में एक न एक
नशा ज़रूरी होता है
मैंने सोचा -
" क्या इसलिए इंसान का जन्म होता है "
खेर...
मुश्किलों से
हार कर
थक कर
टूट कर
जब
नशे का आदि हुआ
तो काफी अंतराल बाद
बन्दों ने मुझसे कहा -
" क्यों नशा करते हो,
क्या तुम अपने आप को
निराश हताश पाते हो "
तब उन्होंने परिभाषित किया
शराब बनाम नशे को
कि
अगर शराब पीने से
इंसान  को सहारा मिलता
उस क्षण
इसे पीने के बाद
इंसान लडखडाता नहीं... SAMAAPT


आपका... आपका ही तो...

विक्की तिवारी...

Day 13, Office, Jabalpur (M.P.)

NASHA - 1

शायद ही कभी किसी का
इस बाt पर ध्यान गया हो
कि नशा और निशा में
कितनी ही रही समानता हो
देखा जाए तो ये दोनों
भाई behan हैं
भाई behan हैं ?
हाँ...
नशा करके जीवन में अँधेरा होता hai
और
निशा तो है रात,
काली घनेरी रात
हम सबने देखा, सुना, महसूस किया होगा कि
सिगरेट जिसके एक सिरे पर धुआं तो
दुसरे पर बेवक़ूफ़ होता है
आज के ज़माने में कोई सिगरेट न पीये
तो हमे अचरज होता है
अब इसकी behan कि सुध लें
शराब अगर इसे तोडा जाए तो मिलता है
shar और आब
मतलब
तीरों कि नदी
ये शरीर को बींध डालती है
शरों कि भांति
पान करता है हमारे ही शरीर का पान
अन्दर ही अन्दर ख़त्म कर देता है हमारे शरीर कि आन
इसका ही बही है गुटखा भी
जो हमारे शरीर कि प्रतिरोधक क्षमता को खा जाता है
इन सबसे से ये समझ आता है
कि नशा
समूचे जीवन को सुचारू रूप से खा जाता है... SAMAAPT

Vicky Tiwari

22 October 2010

Day 12, Office, Jabalpur (M.P.)

दोस्तों, कल जो कविता लिखी थी उसका शीर्षक देना भूल गया था... उसका शीर्षक था - प्रेम...
आज जो कविता पोस्ट कर रहा हूँ, उसका शीर्षक है - ज़िन्दगी :

ZINDAGI
कल
मैंने ज़िन्दगी को देखा
बहुत करीब से
जैसे कोई देखता हो
अपनी मौत को नसीब से
मैंने देखा
की किस तरह ये ज़िन्दगी
एक छोटे से कपडे की बनी गोदी में किलकारी भर रही है
मैंने देखा
की किस तरह ये कमज़ोर ज़िन्दगी
झाड की टहनी पकड़ कर सड़क पार कर रही है
जब अस्पताल गया तो देखा
की किस तरह कई जिंदगियां पलंग पर कराह रही थीं
शायद कुछ मौत के इंतज़ार में
शायद कुछ फिर एक नयी ज़िन्दगी के इंतज़ार में
मैंने पढ़ा है
की किस तरह वेश्यालयों में
असहाय ज़िन्दगी की खरीद फरोख्त होती है
ये भी देख चूका हूँ की किस तरह शराबखानो में
एक ज़िन्दगी अपना पेट पालने के लिए चीथड़े पहन कर नाचने पर मजबूर है
तब मैंने ज़िन्दगी से कहा कि -
तू बिलकुल अप्रतिम है
हर बार रंग बदलती है
और इस तरह ही
तू फिर आती है
एक नए रूप में
एक नयी ज़िन्दगी... SAMAPT

प्रतिक्रिया के इंतज़ार में...
आपका, आपका ही तो...

विक्की Tiwari

21 October 2010

डे ११, ऑफिस, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

नमस्ते, गुड इवेनिंग, आदाब, सत श्री आकाल... यारों सुनाओ कैसे हैं आपके हाल... दोस्तों आज बहुत समय बाद अपने ब्लॉग पे आना हो पाया... अब रोज़ लिखा करूंगा... और खूब लिखा करूँगा... एक नयी शुरुआत एक कविता से करते हैं, जो हमने लिखी है :

वो लड़की है
या
इश्वर की बनाई इक सुन्दर कृति
जिसकी झील सी आँखें हैं
जिसके होंठ गुलाब की पंखुड़ियां
बाल हैं काली घटाओं से भी घने
जब मुस्कुराती है
ऐसा लगता है मानो बाग़ में
हज़ारों फूल खिल गए
एक लड़का है
जो उससे प्रेम करता है
पवित्र निश्छल प्रेम
मगर वो लड़की यही समझती रही
वो भी है औरों जैसा
औरों जैसा ?
उसके जिस्म से प्यार करने वाला
क्या ऐसा हो सकता है
जो उससे निश्छल प्रेम करता है
वो वाकई ऐसा हो सकता है
नहीं कतई नहीं
मगर उस लड़के की भी प्रेम की परिभाषा ही
कुछ और है
वो कहता है
प्यार वो नहीं
जिसे पा लिया जाये
प्यार तो वो है जिसके लिए
सदा दिल में एक कसक सी रहे
क्योंकि अगर शादी के लिए ही प्यार होता है
तो प्यार होना ही नहीं चाहिए...

आपको ये कविता कैसी लगी, मुझे बताईयेगा ज़रूर... अपनी प्रतिक्रियाएं इस ब्लॉग पर या फिर facebook और orkut पे भी दे सकते हैं... facebook और orkut पे सर्च करें - VICKY TIWARI

हम हैं राही प्यार के... फिर मिलेंगे... चलते चलते...

28 April 2010

Day 10, Home, Jabalpur (M.P.)

आज कौन सा दिन है - a wednesday। अच्छी फिल्म थी। एक्टिंग सबने अच्छी की थी लेकिन नसीर और अनुपम तो लाजवाब थे। हालाँकि की कल की पोस्टिंग में मैंने लिखा था की आज में दो पोस्टिंग कर दूंगा लेकिन आज सच बता रहूँ समय नहीं मिला। अपने पासपोर्ट बनवाने के काम में उलझा रहा... इसी वजह से मेरा एक डेढ़ घंटा ख़राब हो गया... yes, ख़राब हो गया। इसी समय भूतपूर्व गुरु का फ़ोन आ गया था, कुछ पूछ रहे थे वो, हमने उनको तरीके से ठांस दिया, खूब गर्राए उनके ऊपर। मजे की बात ये की आज हमारी गाड़ी भी बहुत परेशान कर रही थी और कार की भी सर्विसिंग करनी थी... खेर, किसी तरह घर आये , जल्दी-जल्दी खाना गुटका फिर ऑफिस भागे नहीं तो पापा का फ़ोन आ जाता जो कि मेरे घर पहुँचने से पहले आ चुका था। ऑफिस पहुँच कर गाड़ी ठीक करने गया। रिहर्सल में भी कोई नहीं आया।
हम लोग एक नाटक की reading कर रहे हैं - तीसवीं शताब्दी। आज उसी का मटेरिअल ढूंढ़ रहा था गूगल पर। काफी सारे फोटो मिले, उन ऑफिसर्स के तो सब मिल गए जिन्होंने हेरोशिमा - नागासाकी पर बम गिराया था। बहुत भयानक photographes हैं जब बोम्ब गिराया गया था तब के... जली हुई dead bodies बिखरी पड़ी थी... पूरा देश तबाह हो गया था। युद्ध नहीं होने चाहिए, इससे किसी का भला नहीं होता। हाँ, नुक्सान सबका होता है फिर भले चाहे वो उस युद्ध में शामिल हो अथवा नहीं। बी.बी.सिंह सर ने कहा था की इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं घट रहा है जिससे आपका मतलब न हो। इसलिए कहीं न कहीं हम सभी उस चीज़ के भुक्तभोगी भी हैं और हमी ज़िम्मेदार भी हैं इन्ही तरह के युद्धों के -

"इन्द्रधनुष के आकर्षण में नीलगगन को ताकें कब तक,
पाषाणों के इस युग में हम खुद को तराशें कब तक..."

कल इंडियन आईडल के बारे में बात करेंगे... जाने से पहले प्रार्थना हो जाए :

"कोई आहट कोई दस्तक कोई आवाज़ नहीं,
तू दबे पाँव ख्यालों में चली आती है,
कभी लगता है यूँ के चुपके से तू,
पेहलू में बैठ जाती है,
आके अब तेरा जाना बुरा सा लगे..."

और

"जितनी शिद्दत से हमने चाहा है तुम्हें,
या खुदा इस तरह कोई किसी को चाहे..."

दसविदानिया...

जय Theatre...

27 April 2010

Day 9, Home, Jabalpur (M.P.)

दोस्तों, आज मुझे बहुत नींद आ रही है और रात भी काफी हो गए हैं इसलिए अभी कुछ न लिख कर कल दो बार पोस्टिंग कर दूंगा लेकिन :

"तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको,
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है..."

जय Theatre...

26 April 2010

Day 8, Home, Jabalpur (M.P.)

तो ऐसा है भैया, के हम आ गए...
आज हमने अपने अपने उस नाटक की प्रूफ रेअडिंग की जिसे मैंने और संदीप भाई ने और लोगों के साथ मिलकर सन २००८ में किया था - कॉल। इस नाटक में ६-७ पात्र थे लेकिन इतने समय में सबकी स्क्रिप्ट गुम हो गयी थी। हाँ, ताज्जुब की बात है - मेरी भी स्क्रिप्ट खो गयी थी... मेरी गलती से नहीं, संदीप भाई की गलती से। लेकिन फिर किसी के पास उसकी xerox कॉपी पड़ी हुई थी। पहले उसको किसी और से टाइप करवाया और फिर उसकी आज दूसरी और तीसरी प्रूफ रेअडिंग थी। और आज ही मैंने इसी नाटक की इंग्लिश वाली स्क्रिप्ट की भी कॉपी करवाई क्योंकि संदीप भाई ने कहा था की जब में लौटूंगा तो पहला production इसी नाटक का होगा।
आज मैंने अपने एक दोस्त से पुछा जो रिहर्सल में आता था की क्या तुमने मेरा ब्लॉग पढ़ा। उसने कहा की शुरू के तीन पढ़े थे उसके बाद बोर हो गया। उसकी इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। इसलिए मैंने सोचा की कल से किसी एक विषय को लेकर बात किया करेंगे। इससे मेरा और साथ ही साथ आपका भी बौधिक स्तर बढेगा। संभवतः, एक दो दिनों में TG के registration की कार्यवाही पूरी हो जाएगी। कल फिर से ठाणे जाना है पासपोर्ट के लिए खुद का verification करवाने। आज में पापा के साथ किसी बात पर बहुत हंसा और रिहर्सल में भी दादा और हम और हम सभी किसी बात पर बहुत हँसे थे।
चलने से पहले दो बातें हो जाएँ किसी के बारे में :

"तुमसे मिले थे तो कोई आरज़ू थी,
मिले तुमसे तो तेरे तलब्दार हो गए..."

और

" ये दिल वालों की दुनिया है अजब है दास्ताँ इनकी,
किसी से दिल नहीं मिलता, कोई दिल से नहीं मिलता..."

Jai Theatre...

25 April 2010

Day 7, Home, Jabalpur (M.P.)

नमस्ते, गुड एवेनिंग, आदाब, सत्श्रीअकाल... यारों सुनाओ कैसे हैं आपके हाल।
आज सन्डे था... घर पर ही रहे दिन भर... सुबह ११:३० पे निकला था ऑफिस और संदीप भाई के काम से फिर जल्दी आ गया था। आज जीजाजी बच्चों को छोड़ गए थे, बच्चे दिन भर धमाचोकड़ी करते रहे। बहुत energy होती है बच्चों में... मेरे भांजे ने मुझे ही एक ठूंसा जड़ दिया... जबड़ा हिल गया था... रिहर्सल गया था लेकिन कोई पहुंचा ही नहीं तो में वापस लौट आया। कोई टाइम पे नहीं पहुंचना चाहता... यदि सब लोग टाइम पे पहुँचने लग जाएँ तो फिर बात ही क्या। आज कोतवाली से फ़ोन आया था मुझे... मैं खुश हो गया। शायद मैं पहला ऐसा इंसान होऊंगा जो ठाणे जाने के नाम पे खुश हो रहा है। दरअसल मुझे वहां से फ़ोन इसलिए आया था की मुझे verification करवाना था अपना पासपोर्ट के लिए... बाकी आज कुछ खास नहीं है कहने को आज के लिए... कल सुबह मुझे दौड़ने भी जाना है... मुझे जो काम कल करने हैं उनकी रूपरेखा भी बना ली है। आज सर ने मिलने को कहा था लेकिन नहीं मिले... बहुत दुष्ट हैं वो। खेर, जाने से पहले किसी को याद करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि - मोहब्बत की मोहब्बत है, इबादत की इबादत है, मेरे महबूब की सूरत खुदा से मिलती जुलती है :

"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए ,
मुझे फिर तनहा छोड़ जाने के लिए ..."

और :

"दीवाना हँसता है तो हँसने लेने दो यारों,
वो तन्हाई में बैठ कर रोया भी बहुत है..."

साथ ही :

"संबंधों की पूँजी लेकर हम गए बाज़ार में,
लेकिन दुनिया बहुत तेज़ थी सब कुछ बिका उधार में..."

Jai Theatre...

24 April 2010

Day 6, Home, Jabalpur (M.P.)

अरे दोस्तों, आज में बहुत लेट हो गया ब्लॉग लिखने में। वो क्या हुआ की अभी करीब एक घंटा लाइट गोल रही इस लिए हम लेट हो गए... खेर, अब लाइट आ गयी है तो में लिखने बैठा हूँ। सुबह की शुरुआत ठीक ठाक हुई। आज में लेट उठा तो running के लिए नहीं जा पाया। आज एक बहुत बड़ा और अच्छे काम का आगाज़ हुआ। स्कूल का renovation एक दो हफ़्तों में स्टार्ट हो जायेगा। मैं अपने स्कूल, अपने रंगमंच और अपने पत्रकारिता शोध संस्थान (जो खुल नहीं सका) का नाम आसमान पे लिखे देखना चाहता हूँ।
एक-दो दिन पहले मैंने सबको एक मेसेज भेजा की यदि में एक किताब हूँ तो तुम्हारे हिसाब से मेरा नाम क्या होना चाहिए। जो reply आये वो इस प्रकार थे : चंदू , पेनफुल smile , fire ऑन mountain , एक्टिंग सीखने के १०१ फंडे , all rounder man , मेरी जंग , प्रेम पिपासा , चम्पक लाल की रोमांचक कथाएं , वीर - स्टिल इन सर्च ऑफ़ ज़ारा... लेकिन सबसे अच्छा था जो दीदी ने भेजा था : The Phoenix - one who becomes alive from his own ashes means a true survivor
आज में अपने लिए ३ किताबें लाया : (१) भारतीय संस्कृति के चार अध्याय (२) भारत इतिहास और संस्कृति (३) जो घर फूंके। इनमें से शुरू की दो भारत के इतिहास के बारे में है तीसरी व्यंग्य है। शुरू की दो तो गज़ब की किताबें हैं। उन दो किताबों में वो सब लिखा है जो आम इंसान नहीं जानता, अनभिग्य है इन सबसे.
आज मैं संदीप भाई को ठांस दिया। उन्होंने मुझे कुछ काम करने को कहा था। हमने कहा की भाई मैं अकेला हूँ, नहीं कर पाउँगा... फिर इसी विषय पर १६-१७ मिनट बात होती रही... उनको चिल्लाना बुरा लगता है, ये वोई आदमी है जिसने मुझे उस समय काम दिया जब मैं नाटक करना बंद कर दिया था या यूँ कहूँ की मैं नाटक नहीं कर पा रहा था... एक जिंदा लाश की तरह हो गया था मैं, इसने मुझसे मिलकर मुझमें प्राण फूंके थे अपने नाटक - 'कॉल' में काम देकर। इनकी बस कुछ बातें गलत हैं - टाइम के पाबंद नहीं हैं, लापरवाह हैं चीज़ों के प्रति खासकर नाटक की स्क्रिप्ट, लोगों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं... लेकिन आज उन्होंने कहा की मैं जल्दी लौट कर आके 'कॉल' इंग्लिश मैं करेंगे... मज़ा आएगा... पूरे जबलपुर में हम पहले ऐसे होंगे जो इंग्लिश नाटक कर रहे हैं। ये एक दुस्साहस भी होगा और एक प्रयोग भी जबलपुर के दर्शकों के साथ...
rehearsal गया था वहां कुछ ख़ास नहीं हुआ। दादा दो दिनों से नहीं आ रहे हैं। पता नहीं क्या बात है। मुझे कल मतलब आज (रात के १ बज गए हैं, दूसरा दिन लग गया है) बहुत सारी जगह जाना है.
अच्छा तो भाई लोग हम सोने जा रहे है लेकिन जाने से पहले एक काम करते जाएँ :
" एक दूजे से मिलकर पूरे hoten हैं,
aadhi aadhi एक kahani हम dono..."

Good Night

Shubhratri

Shabbakher

Jai Theatre...

23 April 2010

Day 5, Home, Jabalpur (M.P.)

Offho yaar... Kitni garmi hai yaar...
Aaj ki shuruaat Maa ke pyaar bhare sparsh se hui. Unhone kaha ki paune 6 baj gaye hain uth jao aur dodne chale jao. Phir main utha. Mu-haat dhokar stadium gaya. To wahan apne ek bahut achche parichit mil gaye jinse hum apne photocopy realted kaam karwate hain. Aaj main 4 round dauda 400 mts ke. Phir kareeb 4 round simple brisk walking ke baad, thoda sustaae, thoda Pranayaam kiya, ghar aakar TRATAK kiya, JAL NETI ki Phir naha-dho ke office. Aaj kewal ek baat ke karan main dukhi tha aur wo ye ki mujhe bahut tagda phatka lag gaya, uski bharpaaee main 15 saal lagenge mujhe... Achche bhale mood ki watt lag gayee. Kher Chodo...
Apni asli kahani to shuru hoti hai shaam 6 ke baad. Aaj rehearsal main kewal 6 log the jo baad main 5 ho gaye the. Humne 'Reunion' ki reading shuru ki. Us natak ke end main ek badi achchi line likhi thi ki - "Insaan ko unhi patton (Playing Cards) se khelna padta hai jo uske hisse main aate hain." Sach bhi hai :

"Haalaat ke hathon hum aise khilone hain,
Jo toot bhi jaayen to awaaz nahi karte..."

Upar jo line green color main likhi hai, main bhi use manta hun. Lekin bura tab lagta hai jab unhi patton se main jeetne wala hota hun to log cheating se doosre ikke nikal lete hain aur mujhe harane ki koshish karte hain. Kisi ne sach hi kaha hai - Zindagi hai ek jua... Aajse TG ka thoda kaam shuru kiya jo Sandy Bhai adhura chod gaye hain. Dekho, kab tak poora hota hai. School main bhi rang karwana hai yaar. Bahut sa kaam hai hamare sar paraur kisi ko daya bhi nahi aati. Kher :

"Shukriya e kabr tak pahunchane wale shukriya,
Ab akele hi chale jayenge is manzil se hum..."

Aaj facebook pe apni ek dost ke honeymoon ke photos dekhe. Halanki, usse meri zyada baatcheet to nahi thi lekin wo ek dost zaroor thi. Bahut khoobsoorat lag rahi thi wo. Achcha laga dono ko dekh kar. Bahut khush the dono. My god bless them and there after life. If they had Love merrige then :

"Wo log na jaane kya honge,
Jinhone mohabaat ki aur safal hue..."

aur us dost ke liye jo wakee main bahut khoobsoorat lag rahi thi :

"Sau chand bhi chamkenge to kya baat hogi,
Tum aaye ho to chand ki aukat kya hogi..."

Aaj kuch aur khaas nahi hua... Lekin aaj bhi ek cheez zaroor hui jo pichle 4-5 saalon se roz ho rahi hai, sher padhiye samajh jayenge :

"Kabhi humne tumhen yaad kiya,
Kabhi tum khud mujhe yaad aa gaye..."

aur

"Tum mujhe bhool jao to ye haq hai tumko,
Meri baat aur hai, maine to mohabbat ki hai..."

Thought for tomorrow (24/04/2010) :

"Isse pehle ki zindagi tumhen kha jaye, tum use pee jao... Cheers!"

Jai Theatre




22 April 2010

Day 4, Home, Jabalpur (M.P.)

Lo... Main phir aa gaya.
Aaj subah se hi mera mood thoda naram garam tha. Kal din bhar ka HANGOVER jo nahi utra tha. Shaam hote hote jo kuch hua usne us HANGOVER par, Aag par ghee jaisa kaam kiya. Aaj subah main stadium nahi ja paya. Neend 6 ke bajaye 6:30 pe khuli, isliye. Hai na ek achcha sa excuse... par main kya karun yaar, mujhe jaane main koi problame nahi hai lekin meri neend to khule. Kher... Chaay peekar apni sanstha ka Certificate aur Ticket design kiya, is baat se anjaan ki shaam ko usmain SACHIV mahoday phir koi kami nikalenge. Aur wohi hua jiska dar tha. Itihaas gawah hai ki meri design ki hui koi bhi cheez unhen ek baar main pasand aa gayee ho. Har baar koi na koi kami. Kabhi ye hata do to kabhi wo hata do, iski jagah wo kar do, uski jagah ye kardo. Pareshaan ho gaya hun main. Mera galat faayda uthate hain log. Aaj to maine sabke saamne bol diya ki - "Kisi ko santust kar pana bahut mushkil hai." Mujhe lagta hai unke paas ASTHETIC SENSE (saundary bodh) nahi hai. Tabhi wo meri design ki hui cheezen nahi samajh paate. Photographer, Light Operetor, Secretary hain to kya hua. Today was the last day when I composed something for any theatre group in JBP. Jab tak mujhe rough work (raw material) kiya hua nahi milega, main use compose nahi karunga. Main apni mehnat ko apne saamne nakaare jaate hue nahi dekh sakta. Saala, ek to matter bhi banao, design bhi karo, composing bhi karo, print bhi nikalo (ye sab paisa apni jeb se jata hai)... aur uske baad sunne kya milta hai - ye hata do, wo hata do. 'SAALA' se badi gaali main yahan nahi likh sakta, lekin feeling poori wohi hai. Main jab bhi koi designing karne apni table par baithta hun to mere saamne ek hi baat hoti hai ki main jo bana raha hun wo dekhne main achcha lage, chubhe na aankhon ko kisi bhi tareh se... Wo Rang, Composing, Designing, Layout aur Rules ke hisaab se Dekhne, Sunne, Padhne wale ko achcha lage. Main ye nahi dekhta ki kya hona chahiye aur saamne wala kya keh raha hai, Main ye dekhta hun ki Kya achcha lag raha hai. Waise to adhikatar maamlon main 'SAAMNE wala' kuch kehta hi nahi hai, sirf HUKM deta hai, FARMAAN jaari kar deta hai ki phalaan cheez design kar lena... Are mere bhai, pehle raw material to do... Is condition main, main jo bana ke la raha hun use poori tareh se sweekar to karlo, nahi to bolo mat. Main thodi na kisi se bolne jaata hun ki mujhse design karao.

Bhailog, 30 may wala show khataaee main pad sakta hai. Dada ja rahe hain bahar aur 'SACHIV mahoday' bhi... Lekin maine bol diya ki main to show karke rahunga. Bewakoof nahi hun jo 2 maheeno se Dadhi-Mooch badha raha hun us show ke liye. I must say ki poore Jabalpur main, main ek akela aisa Theatre Artist hun, Ek hi aisa Kalakar hun jo THEATRE ko uski poori maan-maryadaon, naitiktaaon ke saath karta hai, Khud ki zindagi ki keemat par.

Aaj main apne us 'bhootpoorv' guru se bhi mila, thodi khari-khari sunaaee unhen. Aap sab unka naam janna chahte honge. Lekin main aisa nahi karunga kyonki wo shaks aaj bhi kisi ka bhagwan hai, uske jaisa patrkar saare vishv main nahi, uske jaisa insaan milna mushkil hai, main unke pairon ki dhool bhi nahi hun lekin unki sirf ek kami ne unhe mere liye bhootpoorv bana diya - Un par Vishwas, Bharosa nahi kiya ja sakta. Aur in do cheezon ke bina upar likhi unki saari qualities bekar hain.

Main pichle 5-6 saalon se emotional crises se guzar rah hun aur aaj ki date main koi ek vyakti aisa nahi hai jo 'Mera Ho', koi ek aisa nahi hai jise main apne dil ki baaten keh sakun, Mere Mummy-Papa bhi nahi. Dost bahut hain lekin... Chalo chodo. Aagar 'WO' aaj mere saath hoti to hum ek achcha pair banate... Jab hum saath the to kuch log kehte the ki tumhari jodi achchi lagti hai. Yes, I Truly Deserve her. Is baare main jo log ye bakwaas kehte hain ki tumhen wo isliye nahi mili ki koi aur achchi milne wali hai to bahiya meri shaadi kisi bhi heroin se kara do to bhi kya - mujhe 'WO' to nahi mil na... Uske baad mere liye kisi bhi cheez ka koi matlab nahi. Ek line uske liye :

"Uske swabhav main bhi to kuch kharapan hoga,
Nahi to kyun Ganga aakar Sagar se milti hai..."

aur :

"Mujhse bichad ke khush rehte ho,
Meri tareh tum bhi jhote ho..."

Buy Buy...

Jai Theatre